गाँव के जीवन में एक अलग प्रकार का आकर्षण होता है । एक जादुई परिवेश और निष्कलुष व्यवहार -----सब कुछ स्वछंद ---खुली गलियां ---खुले घर साथ में प्रत्येक व्यक्ति का खुला मन |यदि आप बरसों बाद भी अपने गाँव गए हैं ,तब भी आप को पहचानने व आपसे संवाद को इच्छुक अनेक व्यक्ति मिल जांएगे ,जो आपसे स्वयं ही बात करेंगे और स्वयं ही आत्मविभोर हो जायेंगे ! आप कितने ही बड़े क्यों ना हो गए हों , आप के बचपन के बारे में बात करने वाले बहुत लोग मिल जायेंगे या फिर एक आध जना ऐसा जरूर मिल जायेगा ,जो आप को नाम से या फिर बेटा -बेटी कह कर सम्बोधित कर बिन मांगे अपनी ढेरों आशीषें आप पर लुटा देने को तैयार होगा |
ये सच है कि हर इन्सान का रिश्ता कहीं न कहीं गाँव से जरूर जुड़ा होता है | हम नहीं तो हमारे बुजुर्ग कभी न कभी किसी गाँव से ही रोजगार की तलाश में शहर आते है और फिर वहीँ के होकर रह जाते हैं , तो भी गाँव से भावनात्मक रिश्ता कभी नहीं टूटता । गाँव का जीवन बहुरंगी होता है | गाँव के मेले , त्यौहार और जीवन की खुशियों के सांझे पल सबकी अलग ही बात है | भले ही आज गाँव निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर है और वहां भी तेजी से शहरीकरण हो रहा है , कच्चे मकानों की जगह पक्के मकानों ने और कच्ची गलियों की जगह पक्की गलियों ने ले ली है । पर गाँव की एक दूसरे के प्रति भाईचारे की भावना में अमूमन कोई अंतर नहीं आया है । जहाँ शहर में शादी ब्याह जैसे महत्वपूर्ण अवसर भी मात्र एक - दो दिन तक सिमट कर रह गए हैं , वहीं गाँव में हफ़्तों पहले से शादी की अनेक रस्मे शुरू हो जाती हैं जिनमे आपसी मेलमिलाप और रौनक देखते ही बनती है | शहर में मृतक व्यक्ति की अर्थी को चार कंधे भी मुश्किल से मिलते हैं ,, वहीँ गाँव में किसी व्यक्ति की मौत की खबर -- गाँव भर में जंगल में आग की तरह फ़ैल जाती है -- और बिन बुलाये मित्रजन व बिरादरी के लोग हर प्रकार का भेदभाव व गिला शिकवा भुला कर तत्परता से इकट्ठे हो जाते हैं व महीनों मृतक के घरवालों को सांत्वना देने का सिलसिला जारी रहता है । यही खूबियाँ गाँव को शहर से अलग रखती हैं । मैंने इसी लिए अपने ब्लॉग को गाँव के जीवन को समर्पित किया है । कोशिश रहेगी कि इस की हर सामग्री कहीं न कहीं गाँव से जुडी हो अंत में अपने गाँव के प्रति कुछ पंक्तियाँ ------
तेरी मिटटी से बना जीवन मेरा ,
तेरे साथ अटूट है बंधन मेरा ;
अनमोल पूंजी हैं मेरी यादें तेरी ,