तुम्हारे ये धरती - अम्बर -
ये विश्व तुम्हारा हो ;
आज भले दुविधा में उलझा -
उज्जवल भविष्य तुम्हारा हो !
तपो रे ! संघर्ष -अगन में
बन जाओं दमकता कुंदन ,
वरण करो न्याय -पथ का ही
पाओ विपुल यश- वैभव धन
बनो गौतम-गाँधी से ,
गौरव अक्षय तुम्हारा हो !!
बंद मुट्ठी में देखो तो ,
श्रम असीम छुपा है ;
तम को जो मिटा दे जग से
वो पावन उजास छुपा है ;
पीड़ मानवता की हरना
बस लक्ष्य तुम्हारा हो !!
तुम्हारे ये धरती - अम्बर
ये विश्व तुम्हारा हो ,
भले आज दुविधा में उलझा
उज्जवल भविष्य तुम्हारा हो !!
स्वरचित -- रेणु
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