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शनिवार, 22 जनवरी 2022

क्या दूं प्रिय उपहार तुम्हें?

 क्या दूं प्रिय! उपहार तुम्हें?

जब सर्वस्व पे है अधिकार तुम्हें

मेरी हर प्रार्थना में तुम हो
निर्मल अभ्यर्थना में तुम हो
तुम्हें समर्पित हर प्रण मेरा
माना जीवन आधार तुम्हें

मुझमें -तुझमें क्या अंतर अब!
 कहां भिन्न दो मन-प्रांतर अब
क्या शेष रहा भीतर मेरे
जीता है सब कुछ हार तुम्हें

मेरे साथ मेरे सखा तुम्हीं
मन की पीड़ा की दवा तुम्हीं
क्यों आस कोई जग से रखूं
जब सौंपा सब उर भार तुम्हें

क्या दूं प्रिय! उपहार तुम्हें?
जब सर्वस्व पे है अधिकार तुम्हें
 

रविवार, 11 जुलाई 2021

रहने दो , कवि! नारी विमर्श पर कविता

 ना उघाड़ो  ये   नंगा सच  
ढका ही रहने दो , कवि!
 दर्द  भीतर का  चुपचाप 
 आँखों से बहने दो कवि!//

 
 

  
 
ये व्यथा लिखने में,  
 कहाँ लेखनी  सक्षम कोई ?
लिखी गयी  तो  ,पढ़ इन्हें 
 कब  आँख हुई नम कोई ?
संताप सदियों से सहा है 
 यूँ ही सहने दो कवि!

डरती रही घर में भी 
 ना बची खेत - क्यार में 
कहाँ-  कहाँ लुटी अस्मत 
बिकी बीच बाज़ार में !
 मचेगा शोर  जग -भर में 
 ये जिक्र जाने दो ,कवि!
 
 लिखने से  ना होगा तुम्हारे  
सुनों ! कहीं इन्कलाब कोई 
रूह के जख्मों का मेरे 
ना दे पायेगा  हिसाब कोई
मौन रह ये रीत जग की 
 निभ ही जाने दो, कवि !  
 दर्द  भीतर का  चुपचाप 
 आँखों से बहने दो कवि!/
 

शनिवार, 12 जून 2021

 धीरे- धीरे पग धरो सजनिया 
सजना के आँगन में ; 
चिर  संचित  सपने ले उतरो 
 प्रीत  के चन्दन वन  में !
 

झुके- झुके   नैनों में सजी 
 गहरी रेखा   काजल की .
 लगा     महावर  खूब ,
 मोहे मन   रुनझुन  पायल की ;
  हर मन  भावविभोर आज 
  बिछा तुम्हारे  अभिनन्दन  में !

सरल सा साजन  है  आतुर 
 उठाने को   नाज़  तुम्हारा . 
उसके जीवन और साँसों पर 
 अब है  राज़ तुम्हारा ;
दिखना दो पर एक ही रहना 
बस कर  एक दूजे के मन में !

 छूटी बचपन की  संग  -सहेली  
  पीछे  रही  गली बाबुल की . 
 उठी हूक जोर जिया में  
 याद  कर  अखियाँ छलकीं  ,
 आवेग  भावों  के  होते प्रबल 
 विचलित  से अंतर्मन में !
 

ची  हाथ मेहँदी  सुहाग  आज 

राग- प्रीत  भीतर लहराए ,

प्रियतम संग बंधी  बिन  डोर ,
बंधन   ये कोई   तोड़ ना पाए 
छवि बसी पिया की बीच 
 रसीले मतवाले नयनन  में !

रविवार, 21 मार्च 2021

कहाँ आसान था

 

था वो मासूम-सा 
दिल का  फ़साना साहेब 
कहाँ आसान था पर
प्यार निभाना साहेब !

दुआ थी  ना कोई चाह  अपनी 
यूँ ही  मिल गयी उनसे  निगाह अपनी 
 बड़ा  प्यारा था उनका
सरेराह मिल जाना साहेब !

रिश्ता ना जाने कब का
लगता  करीब था
 उनसे  यूँ मिलना 
बस अपना नसीब था 
अपनों से प्यारा  हो गया था
 वो एक बेगाना साहेब ! 

वो सबके खास थे
पर अपने तो दिल के पास थे
हम इतराए हमें मिला
दिल उनका नजराना साहेब! 

हमसे निकलने लगे बच - बच कर
खूब मिले ग़ैरों से हँस कर!
फिर भी रहा राह तकता,
दिल था अजब दीवाना साहेब!

बातें थी कई झूठी,
अफ़साने बहुत थे!
हुनर उनके पास
बहलाने के बहुत थे!
ना दिल सह पाया धीरे- धीरे
उनका बदल जाना साहेब! 

बहाए आँसू  उनकी खातिर 
और    उड़ाई  नींदें अपनी 
जो  लुटाया उनपर हमने 
 था अनमोल खजाना साहेब 

बहुत संभाला हमने खुद को
दर्द को पीया भीतर -भीतर
पर ना रुक पाया जब -तब
अश्कों का छलक जाना साहेब!!

अलविदा  कहना  कहाँ आसान था ?
 टूटा जो रिश्ता वो मेरा गुमान था !
 पर बेहतर था  तिल-तिल मरने से ,
एक दफ़ा मर जाना  साहेब !


बुधवार, 17 फ़रवरी 2021

आज कविता सोई रहने दो !

 आज  कविता सोई रहने दो,

मन के मीत  मेरे !

आज नहीं जगने को आतुर 

सोये उमड़े   गीत मेरे !

कोई तो ऐसी बात है जो ये

 मन विचलित हुआ जाता है ,

अनायास जगा दर्द कोई 

 पलकें नम किये जाता है ,

आज नहीं सोने देते  

 ये रात - पहर रहे बीत मेरे !


आज ना चलती मन की कोई

उपजे ना प्रीत का राग कोई 

 शांत हृदय में अनायास ही

व्याप्त हुआ विराग कोई,

चैन से रहने न देते

देह -प्राण रहे रीत मेरे! 


कोई खुशी  ना छूकर गुजरे,

बहलाती  ना सुहानी याद कोई।

होठों पर से लौटती जाती,

आ -आ कर फरियाद कोई  ।

लगे बदलने असह्य पीर में 

मधुर   प्रेम- संगीत मेरे!


























यू

शुक्रवार, 11 दिसंबर 2020

सुकुमार कली घर आई

 ,❤❤🌹🌹❤❤

सुकुमार कली घर आई

आँखों में सपने  भरआई। 

अडिग विश्वास लिए मन में

 सजी साजन संग बंधन में

पुलकित कभी सशंकित सी

नव vihaan




बुधवार, 2 दिसंबर 2020

हम गीत तुम्हारे लिखते हैं

 खुशियों के कोलाहल में भी

हम गीत तुम्हारे लिखते हैं

हँसते- हँसते  छलक पड़े जो

आँसू खारे लिखते हैं।। 


महफ़िल में हो जाते तन्हा

ले तुम्हें साथ ख्यालों में

संग तुम्हारे आने से

मिटते दुःख सारे लिखते हैं।। 


 तुम्हारे लिए हर गीत लिखा

हर ग़ज़ल तुम्हारे नाम कही

बतलाते इस दुनिया को 

 हो  कितने प्यारे  लिखते हैं।। 


सरल, निश्चल और निर्मल

बचपन के साथी से लगते

  देकर स्नेहिल संग अपना

मोडे वक्त के धारे लिखते हैं।। 





रविवार, 29 नवंबर 2020

वो तुम ना थे



जो मेरा चितचोर था,
वो तुम न थे, कोई और था!

 मिटा  तम  भीतर का जो
 भर गया  था उजास  अपने
तनहाईयों  से  तोड़ नाता
 ले  आया  था पास अपने
मैं चाँद  वो  चकोर  था
वो  तुम  ना  थे कोई  और  था  !

बन गया था एक दिन
वज़ूद का अटूट हिस्सा,
अलग हो  बन चला आज
 एक भूला बिसरा-सा किस्सा,
 मैं पतंग  कभी वो  डोर  था
वो  तुम  ना  थे कोई  और  था !!

  जिसे सौंप दिये थे सब
 विकल  मन   के राज़ मैंने
सहेज अनगिन खुशियाँ  
सजाये  सपनों के साज़ मैंने
मैं जिधर देखूँ हर ओर था
वो तुम ना थे कोई और था! 




सोमवार, 16 नवंबर 2020

 शाम ढले  जाने क्यूँ
ये नैना भर आये मीता! 
दुनिया बहुत बड़ी थी लेकिन
तुम ही क्यूँ याद आये मीता? 

तुम से तुम तक बात मेरी
तुम्हीं तक जाती राह मेरी
 अनगिन चेहरे नज़र से गुजरे
तुम्हीं क्यूँ मन को भाये मीता? 

अधिकार ना कोई  तुम पर
पर अपने से लगे सदा
पल भर को भी मन को
लगे  ना कभी पराये मीता! 
 
मिलतुमसे  अनगिन खुशियाँ पाई
संग पीड़ा के दंश सहे
जुदाई के दुख झेले हँस कर
आनंद विरह के पाये मीता
 
उजालों से जगमग हुआ जग सारा
महल ,चौबारे और गलियाँ
तुम बिन भीतर रहा अँधेरा
दुनिया ने दीप जलाये मीता! 


रविवार, 15 नवंबर 2020

ये शाम बहुत निराली है

 ये शाम  बहुत निराली  है

तेरी यादों से सजी दिवाली है

पग- पग पर दी ठोकर सबने
कब साथ निभाया दुनिया ने? 
खूब हँसे तुम संग मनमीता
बहुत रुलाया दुनिया ने
प्रीत की रीत तुम्हीं से समझी
जो मौन रह   निभा ली है