तुम तो अक्सर कहती थीं
कि मैं तुम्हारी जान थी माँ
पर क्यों न बतलाया तुमने
मैं इस घर में मेहमान थी माँ
सजा -संवार कर घर-भर को
जब प्यार से महकाती थी
मैं हूँ तुम्हारी लाडली बिटिया,
कह चूम-चूम दुलराती थी
पर ये घर मेरा ना था अपना
इस राज़ से मैं अनजान थी माँ
क्यों कहा सदा पराई सबने
ये बात समझ ना आती थी
कहाँ मेरा वज़ूद अलग था
तुमसे लिपट कर रहती थी!
कुछ तो सच कह देती मुझसे
तुम मेरा भगवान थी माँ!
जिस आँगन को अपना माना
क्यों यहाँ सदा ना रह पाई
क्यों दूर है हर बेटी का घर
ये बात ना कभी समझ पाई!
नियति जुड़ी परदेश से मेरी
ये देख के मैं हैरान थी माँ
पर क्यों न बतलाया तुमने
मैं इस घर में मेहमान थी माँ