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बुधवार, 6 नवंबर 2019

सुनो कवि !

सुनो ! कवि ,  धर्म तुम्हारा बहुत बड़ा
कभी कुटिल , कपट  व्यवहार ना करना 
निज तुष्टि की खातिर बिन सोचे 
मर्मान्तक प्रहार ना करना !

तुम  संवाहक  सद्भावों के ,
  करुणा     के अमिट प्रभावों के  ;
  बुद्धिज्ञान  के   दर्प,गर्व में
 फूल  व्यर्थ की रार  ना करना !
कवि , धर्म तुम्हारा बहुत बड़ा !!

सदियों रहेगी  गूँज    तुम्हारी वाणी की ,
सौगंध  तुम्हें  कविधर्म , माँ वीणापाणी की ;
फूल बनाना शब्दों को 
 बनाकर खंज़र  वार ना करना
सुनो  कवि ! धर्म तुम्हारा  बड़ा ! !