यह ब्लॉग खोजें

शुक्रवार, 8 नवंबर 2019

वहशी तुम ! कठुवा कांड

 रौंदा   जिस  कली को मिलजुल -
क्या वो देह कोई पत्थर की थी?
वो भी चांदनी आंगन की -
 इज्जत किसी घर की थी |

घोल कोमल देह में 
नशीली दवाओं का जहर 
 अय्याशों  ने खूब ढाया
 सुकुमारी  पर  पहरों कहर;
 कांटे चुभोये  निर्मम  हो     -
वो नवकली केसर की थी !!


 सीना फटा होगा  पिता का -

 देख  लाडली  को बदहाल में -
 समझ  ना पाया  होगा कैसे  फंसी  -
 वहशियों  के जाल में -
 सुध -बुध खो बैठी होगी  माँ -
 जिसकी वो   परी अम्बर की थी !!

 दुष्टों के संहार को -
 बहुत लिए अवतार तुमने ,
 फिर मौन रहकर क्यों सुने -
 मासूम के चीत्कार तुमने ? 
 महिमा तो  रखते  तनिक  -
 चौखट तेरे मंदिर की थी !!

साबित  कर ही  देते 
हो सचमुच के भगवान् तुम ,
 कहीं से  आते बन उस दिन -
 निर्बल के बल -राम तुम -
पापी का सीना  चाक  करते -
बात बस पल भर की थी !!!!!!!!!!!