कोटि नमन दिवंगत आत्मा को
🙏🙏🙏🙏🙏
षड्यंत्र ही था विधना का ,
तुम जो जीवनरण में पस्त हुये
कर्म - साधना हुई निष्फल
लक्ष्य सारे ध्वस्त हुये!
ना सखा स्नेही केशव सा
मिला ना कोई शिष्य अर्जुन
जो अदृश्य शाप मिटा देता
ना पाया सावित्री सा समर्पण
सूरज बन दमके कुछ पल ।
फिर धुंधले तारे से अस्त हुये
कौन दर्द तुम्हारा जान सका
बंशी की विकल सी धुन मे ?
सुलझाते अनगिन प्रश्न भटके
सघन वेदना के वन में ,
कौन पीड़ व्याप गयी भीतर
जग से जो यूँ विरक्त हुये ?
जा मिलो विराट शून्य में अब
जीवन छल से बाहर निकल
निष्ठुर जग के सहे सितम बहुत
हुई शाप ढोते आत्मा बोझिल
विदा ! कोटि नमन पथिक !
तुम्हें मोक्ष मिला तुम मुक्त हुए !!