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रविवार, 29 नवंबर 2020

वो तुम ना थे



जो मेरा चितचोर था,
वो तुम न थे, कोई और था!

 मिटा  तम  भीतर का जो
 भर गया  था उजास  अपने
तनहाईयों  से  तोड़ नाता
 ले  आया  था पास अपने
मैं चाँद  वो  चकोर  था
वो  तुम  ना  थे कोई  और  था  !

बन गया था एक दिन
वज़ूद का अटूट हिस्सा,
अलग हो  बन चला आज
 एक भूला बिसरा-सा किस्सा,
 मैं पतंग  कभी वो  डोर  था
वो  तुम  ना  थे कोई  और  था !!

  जिसे सौंप दिये थे सब
 विकल  मन   के राज़ मैंने
सहेज अनगिन खुशियाँ  
सजाये  सपनों के साज़ मैंने
मैं जिधर देखूँ हर ओर था
वो तुम ना थे कोई और था!