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मंगलवार, 21 अप्रैल 2020

ओ मेघ जलभरे !!

चखने  दो अमिया  से  दिन
लौटो घर सुरमई  मेघ जलभरे  !
देख तुम्हारी श्याम छटा
धरतीपुत्र का जिया डरे !

बसंत अभी  तो  नया- नया है
लो ! मादकता छाई पेड़ों पर !
लगा टकी फसल निहारे
बैठा रघुवा  मेढ़ों पर!
मेहनत  पे उसकी फिरे ना पानी
ना नयनन नीर भरे !
देख तुम्हारी श्याम छटा'.
धरतीपुत्र का जिया डरे !!

शाख -शाख फुदके गिलहरी
कोकिल मधुर  तान भरे,
खिला  अभी अमलतास
 देखे  जी  ना भरे!
चले आये बेमौसम क्यों
किस निष्ठुर ने   कान भरे?
देख तुम्हारी श्याम छटा
धरतीपुत्र का जिया डरे !!

पक जाने  दो  दाना-दाना,
ना बिखरे गेहूँ,सरसों की  बाली ,
बौराये  पेड  की  आस  ना टूटे
झुकने  दो   अंबुवा  की  डाली,
सहज-सहज  पक अमिया 
बन जाये  आम  मधुरस  भरे !
देख  तुम्हारी  श्याम  घटा
धरतीपुत्र  का  जिया  डरे!

खूब गरजना -  पर  बरसकर
 मान  ना अपना कम कर लेना ;
अभी सजी  सृष्टि चहुँदिश
रंग इसका ना बदरंग कर देना  ;
थोड़ा धीरज धर कर आना
 करना  बुझे  प्राण हरे !
देख  तुम्हारी  श्याम  घटा
धरतीपुत्र  का  जिया  डरे!