सन्देश मेरे होंगे
बीते दिनों की बात अब,
कहाँ मुमकिन होगी
शब्दों में मुलाकात अब !
छोड़ दी हमने देखो
राह थी जो रुसवाई की ,
ऊँगली कब तक थामते
दौड़ एक परछाई कीे ,
कर इंतज़ार ना सहता
मन कोई आघात अब !!
तुम्हारे आने से जो
उड़ चलीं थीं उदासियाँ .
लौट आईं संग ले फिर वही
दर्द भरी तनहाइयाँ ;
ना ढलेगी कभी , सुनो !
ये विरह की रात अब
कोई मिल गया यूँ ही !
चलते - चलते राह में
और बिन शर्त मिटता रहा
हरदम तुम्हारी चाह में
ना होगा जिंदगी में
कभी वो इत्तिफ़ाक अब
बिन तुम्हारे कैसे जियेंगे -
और हसरतों का क्या होगा ?
कह नहीं सकते अभी
आगे का मंज़र क्या होगा ?
छोड़े वक्त के हवाले
अनसुलझे ये सवालात अब !!
छोड़े वक्त के हवाले
अनसुलझे ये सवालात अब !!