गीत मेरे अनमने से
तुम्हें ही पुकारते ,
आ भी जाओ अब कहीं से
ये शाम बहुत उदास है !
राह देख थक गया जो
लौटो तनिक उस गाँव में ,
कुछ पल बैठो तो सही
यादों की नरम छाँव में ,
दो नयन बड़ी आस से
सूना -सा पथ निहारते !
पास कितने लोग हैं
पर तुमसा कोई है कहाँ ?
आ मिलो किसी जगह
कोई दूसरा ना हो जहाँ ,
ना जाने कैसे ख्वाब भीतर
बैठ हम सँवारते ,
टूटे बांध सब्र के
हुए भीड़ में तन्हा से हम ,
सूख चली उम्मीद हरी
बदल गये मन के मौसम ,
परछाईयों से उलझते
ये प्राण चले हारते !!
आ भी जाओ अब कहीं से
ये शाम बहुत उदास है !!
आ भी जाओ अब कहीं से
ये शाम बहुत उदास है !!