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सोमवार, 4 नवंबर 2019

गीत मेरे अनमने से



गीत मेरे अनमने से
तुम्हें   ही  पुकारते , 
आ भी जाओ अब कहीं से
 ये शाम बहुत उदास है ! 

 राह देख  थक गया जो 

लौटो तनिक उस गाँव में ,
कुछ पल बैठो    तो सही
 यादों की नरम  छाँव में  ,
दो नयन बड़ी आस से 
सूना -सा  पथ निहारते  !
 

पास  कितने लोग हैं 
पर तुमसा  कोई है कहाँ ?
आ मिलो   किसी जगह  
कोई  दूसरा ना हो जहाँ  , 
ना जाने  कैसे ख्वाब भीतर  
बैठ  हम   सँवारते , 
 

टूटे  बांध  सब्र के 
 हुए  भीड़ में  तन्हा से हम ,
 सूख चली उम्मीद हरी 
 बदल गये मन के मौसम  ,
परछाईयों से  उलझते
 ये   प्राण  चले  हारते !!
 आ भी जाओ अब कहीं से 
 ये शाम बहुत उदास है !!