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मंगलवार, 1 अप्रैल 2025

कवि! तुम कहाँ लिख सकोगे ?

 कवि! तुम कहाँ  लिख सकोगे

 कहानी नारी के अधिकार की! 

जिससे मुक्त न हो सकी कभी

उस मन के कारागार की!! 

 

ना पढ़ पाओगे  सूने नयन के

खंडित सपनों की ये  भाषा ! 

आ सकी ना विदीर्ण मन के

काम कोई जग की  दिलासा! 

सब खोये अपनी लगन में

कौन था अपना यहाँ?

असहनीय थी,बेगानों से ज्यादा 

चोट अपनों की मार की! 

कवि! तुम कहाँ  लिख सकोगे

कहानी नारी के अधिकार की




पिंजरे में बन्द मैना  सदियों से

गाती सबसे  रसीला गान कवि! 

उन्मुक्त उड़ान की चाह को कोई

कब यहाँ पाया जान कवि! 

समाएगी कैसे अस्फुट स्वरों में 

व्यथा   स्वर्णिम कैद की! 

गीत में ना ढल सका जो

उस निशब्द हाहाकार की! 

 कवि! तुम कहाँ  लिख सकोगे

कहानी नारी के अधिकार की



सत्य पर भ्रमित पति से

क्या प्रेम का प्रतिफल मिला? 

ऋषि  गौतम के शाप से

जो बन गई शापित शिला! 

आगंतुकों की ठोकर में

पड़ी रही निस्पंद जो

कौन व्यथा जान सका

उस अहल्या नार की! //

कवि! तुम कहाँ  लिख सकोगे

कहानी नारी के अधिकार की