।माँ- बेटी
जब माँ- बेटी ने मिल कर
कुछ रातें संग बिताई होंगी
जी भर गुरबत कर बेटी से
माँ खुल कर मुस्काई होगी।
भला बुरा जिसने जो किया
बस अपने ऊपर भार लिया,
याद ना रखती माँ कुछ भी
सबका हर दोष बिसार दिया,
गुनते लेखा-जोखा जीवन का
माँ की आँख भर आई होगी
नाती -पोतों से भरा है आँगन
माँ की शान गजब की है!
दामन में भर दुआएँ बैठी
माँ धनवान गज़ब की है,
सुख देख रही सांझे कुल का
कहाँ ऐसी नेक कमाई होगी
काया हो जर्जर रह गई आधी
होता देख जिया को कम्पन
छुआ होगा जो बेटी ने माँ को
डराती होगी देह की ठंडक
स्नेहिल स्पर्श से बेटी के
कमजोर देह गरमाई होगी
जी भर गुरबत कर बेटी से
माँ खुल कर मुस्काई होगी।
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