विकल माँ की रात न कटती।
एक -एक पहर बीते मुश्किल से
जब तक पौ न फटती!
ताक रही निशब्द और एकाकी
कब भोर उगे चिड़ियाँ चहके!
शिवालय से भक्ति के सुर बिखरें
खिलें फूल और आँगन महके!
न कटते दूभर पल प्रतीक्षा के .
बस बंद द्वार को तकती!
विकल माँ की रात न कटती!
अशक्त हो भूली बाहर की दुनिया
घर में ही नज़रबन्द हुई!
हुई अरुचि हर एक सुख से
जीने की कामना मन्द हुई!
जी भरा देख हर रंग जीवन का
देखी दुनिया बनती मिटती
विकल माँ की रात ना कटती!
सर सहलाते अब भी ना थकती
सुनती हर व्यथा मन की
आशीषों की झड़ी लगाती
हर लेती पीड़ा सब जीवन की
मंगल कामना में कुटुंब की
रहती राम की माला जपती!
विकल माँ की रात न कटती!
रोगों की मारी देह से हारी
हुई बेबस और लाचार सी माँ!
अप्रासंगिक समझ रही खुद को
कहती खुद को बेकार सी माँ!
मन के दर्द सुन ले हर कोई
तन की पीर ना बंटती!
विकल माँ की रात ना कटती!