ओ चाँद !क्या वापस ला सकोगे
वो सुहानी- सी चाँद रात मेरी,
तुम्हारे सामने हो रही थी
जब सखा से बात मेरी!
बने साक्षी तुम्हीं सदा
उस मौन अभिनव प्रेम के
देते रहे संदेश अनवरत
प्रिय के कुशल क्षेम के!
जिसकी महक से महकती
हर नवल प्रभात मेरी!
ओ चाँद !क्या वापस ला सकोगे
वो सुहानी सी चाँद रात मेरी!
थी दूधिया स्वच्छ चाँदनी
खिला था मन का कमल!
विहंसते नयन में झाँकती,
एक छवि अभिराम निर्मल
मुट्ठी से रेत -सी फिसली
मीठे प्यार की सौगात मेरी!
ओ चाँद! क्या वापस ला सकोगे
वो सुहानी सी चाँद रात मेरी!
अतीत की डगर- डगर
जा ढूँढती चारों पहर,
सम्बल थे वो जो जीने का
गुम हुए पल जाने किधर!
प्यार की रंगत थी जिसमें
खो गई हसीं कायनात मेरी!
ओ चाँद! क्या वापस ला सकोगे
वो सुहानी सी चाँद रात मेरी!