धीरे- धीरे पग धरो सजनिया
सजना के आँगन में ;
चिर संचित सपने ले उतरो
प्रीत के चन्दन वन में !
झुके- झुके नैनों में सजी
गहरी रेखा काजल की .
लगा महावर खूब ,
मोहे मन रुनझुन पायल की ;
हर मन भावविभोर आज
बिछा तुम्हारे अभिनन्दन में !
सरल सा साजन है आतुर
उठाने को नाज़ तुम्हारा .
उसके जीवन और साँसों पर
अब है राज़ तुम्हारा ;
दिखना दो पर एक ही रहना
बस कर एक दूजे के मन में !
छूटी बचपन की संग -सहेली
पीछे रही गली बाबुल की .
उठी हूक जोर जिया में
याद कर अखियाँ छलकीं ,
आवेग भावों के होते प्रबल
विचलित से अंतर्मन में !
रची हाथ मेहँदी सुहाग आज
राग- प्रीत भीतर लहराए ,
प्रियतम संग बंधी बिन डोर ,
बंधन ये कोई तोड़ ना पाए
छवि बसी पिया की बीच
रसीले मतवाले नयनन में !