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शनिवार, 12 जून 2021

 धीरे- धीरे पग धरो सजनिया 
सजना के आँगन में ; 
चिर  संचित  सपने ले उतरो 
 प्रीत  के चन्दन वन  में !
 

झुके- झुके   नैनों में सजी 
 गहरी रेखा   काजल की .
 लगा     महावर  खूब ,
 मोहे मन   रुनझुन  पायल की ;
  हर मन  भावविभोर आज 
  बिछा तुम्हारे  अभिनन्दन  में !

सरल सा साजन  है  आतुर 
 उठाने को   नाज़  तुम्हारा . 
उसके जीवन और साँसों पर 
 अब है  राज़ तुम्हारा ;
दिखना दो पर एक ही रहना 
बस कर  एक दूजे के मन में !

 छूटी बचपन की  संग  -सहेली  
  पीछे  रही  गली बाबुल की . 
 उठी हूक जोर जिया में  
 याद  कर  अखियाँ छलकीं  ,
 आवेग  भावों  के  होते प्रबल 
 विचलित  से अंतर्मन में !
 

ची  हाथ मेहँदी  सुहाग  आज 

राग- प्रीत  भीतर लहराए ,

प्रियतम संग बंधी  बिन  डोर ,
बंधन   ये कोई   तोड़ ना पाए 
छवि बसी पिया की बीच 
 रसीले मतवाले नयनन  में !