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मंगलवार, 10 सितंबर 2019

अच्छा हुआ -

अच्छा हुआ जो तुमने 
आईना दिखा दिया 
हम कुछ समझ बैठे  थे - 
पर बात    और थी  !

छत को तकते बीते हैं ,
 अनगिन पहर आँखों में 
 जो ख़्वाब तुम्हारे लाती थी, 
वो रात और थी !

उलझ  रह जाते हैं  अब तो -
बेकार की दुनियादारी में ;
जो मन  का संबल बन जाती थी  ,   मुलाकात और थी !

अब कहाँ   बहारें  हैं वैसी 
जो   भीतर उमंग जगाती थी -
 जहाँ  तेरे  प्यार  की रंगत थी - 
कायनात और थी !

मेरी हँसी में खुश थे -
मेरे ग़म में मुरझा जाते थे ;
 जो नज़र आती थी तब तुममें  -
 वो बात और थी !