अच्छा हुआ जो तुमने
आईना दिखा दिया
हम कुछ समझ बैठे थे -
पर बात और थी !
छत को तकते बीते हैं ,
अनगिन पहर आँखों में
जो ख़्वाब तुम्हारे लाती थी,
वो रात और थी !
उलझ रह जाते हैं अब तो -
बेकार की दुनियादारी में ;
जो मन का संबल बन जाती थी , मुलाकात और थी !
अब कहाँ बहारें हैं वैसी
जो भीतर उमंग जगाती थी -
जहाँ तेरे प्यार की रंगत थी -
कायनात और थी !
मेरी हँसी में खुश थे -
मेरे ग़म में मुरझा जाते थे ;
जो नज़र आती थी तब तुममें -
वो बात और थी !
आईना दिखा दिया
हम कुछ समझ बैठे थे -
पर बात और थी !
छत को तकते बीते हैं ,
अनगिन पहर आँखों में
जो ख़्वाब तुम्हारे लाती थी,
वो रात और थी !
उलझ रह जाते हैं अब तो -
बेकार की दुनियादारी में ;
जो मन का संबल बन जाती थी , मुलाकात और थी !
अब कहाँ बहारें हैं वैसी
जो भीतर उमंग जगाती थी -
जहाँ तेरे प्यार की रंगत थी -
कायनात और थी !
मेरी हँसी में खुश थे -
मेरे ग़म में मुरझा जाते थे ;
जो नज़र आती थी तब तुममें -
वो बात और थी !