पहर एक एक गिन -गिन बीता
राह में पलक बिछाए थे
पर जब - जब आस धरी थी हमने
तब- तब तुम ना आये थे !
क्या जानों तुम पीड़ा मन की ?
क्या मेरे अरमान सुनो !
जान ना पाए मोल प्यार का
कौड़ी भाव लगाये थे !!
बौराए थे नीम आम
कोयल कूकी थी मस्ती में ,;
ना हरियाये बुझे प्राण
बसंत में पतझड़ छाये थे !!
कड़ी धूप में भटके दिन भर
दिन गुजरा और शाम ढली
बाद इसके गया वक्त ठहर,
स्याह रात ने नागिन बनकर
अनगिन दंश लगाये थे !!
गैरों की महफ़िल में जब
अपने बनकर आये थे ;
सबसे हँस-हँस कर बतियाये
बस हमीं से नजर बचाए थे |
मायूसी की आँधी में
सपने सब मिट हो धूल उड़े
दर्द के बादल भर- भर बरसे
आँखों में सावन छाये थे !!
शाम रुलाने को आयी बस
रात में आँख तनिक लगी ना
यादों ने सोये दर्द जगाए थे !