निर्मोही साजन ना जाने सखी
हिय की विरहा पीर
पल -पल छलके नैन गागरी
ना कोई आन बंधावे धीर !
दिन बीते -- ये रैन कटे ना
कंठ रुंधे बोल ना आवे,
फागुन आया ना आये प्रियतम,
मोहे साज सिंगार ना भावे
फूल खिले ये मन मुरझाया
कोयल कूके दे जियरा चीर !
सुध बुध रही ना अपने तन की
फिरूं खोई विकल अधीर !!