यह ब्लॉग खोजें

शुक्रवार, 29 नवंबर 2019

लघु कविता



निर्मोही साजन ना जाने सखी
   हिय की विरहा पीर
 पल -पल   छलके नैन गागरी
ना कोई आन बंधावे धीर !

 दिन  बीते  -- ये   रैन कटे ना
 कंठ  रुंधे बोल  ना आवे,
 फागुन आया ना आये  प्रियतम, 
 मोहे  साज  सिंगार ना भावे
फूल खिले ये मन मुरझाया
कोयल कूके   दे जियरा  चीर !
सुध बुध रही ना अपने तन की
फिरूं  खोई  विकल अधीर  !!