माना जीवन की धूप कड़ी थी,
पर ये दुनिया बहुत बडी थी,
ढूंढ के तो देखा होता
पग -पग पे छाँव खडी थी!
मधुर मुस्कानों के पीछे क्यों ?
मायूसी के तम काले थे ,
कैसे नजर से हुये ओझल
जीवन के असीम उजाले थे,
किस ठोकर से नियति की /
पर ये दुनिया बहुत बडी थी,
ढूंढ के तो देखा होता
पग -पग पे छाँव खडी थी!
मधुर मुस्कानों के पीछे क्यों ?
मायूसी के तम काले थे ,
कैसे नजर से हुये ओझल
जीवन के असीम उजाले थे,
किस ठोकर से नियति की /
टूटी सांसों की लड़ी थी ?
सुनों सुशांत ! हुए क्यों शांत ?
करके अशांत अपनों को ,
सब कुछ था तुम्हारी झोली में
लगे पंख सुंदर सपनों को ,
दिखला देते किसी अपने को
सुनों सुशांत ! हुए क्यों शांत ?
करके अशांत अपनों को ,
सब कुछ था तुम्हारी झोली में
लगे पंख सुंदर सपनों को ,
दिखला देते किसी अपने को
जो मन में पीर गड़ी थी।
अश्रुपूरित नमन