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शनिवार, 18 जुलाई 2020

बीती रुत बसंत - लघु कविता

बीती  रुत बसंत,
 जिसे  ढूंढे  मन मेरे;
कहाँ  सपनों के साज
लुटे  बहार के डेरे !


अकेले जीना सीख
 मीता  के  मीत  अनेकों
दे  उन्हें  दुआएं रोज़
बात  यही  हित  तेरे !


समय ना  लौटा  आय
यही   है  जग की  रीती
  ढलती  जीवन  की साँझ
  ना आते  नए सवेरे !!!