नज़रों से राहें बुहारता है कोई
-ले नाम किसी का पुकारता है कोई !
आ साहिल पे डूबी येक्यों मेरी कश्ती ?
उजाड़ गया कोई अरमानों की बस्ती ?
अपना बन किसने घोपां है खंजर ,
इन सवालों से लड़ता ना हारता है कोई !
सबने मिलजुल दीवाली मनाई,
दुनिया सारी रोशनी में नहाई ।
सूनी सी ये चौखट - कहो !किसकी है भाई ?
क्यों ना इसपे -दिया इक बालता है कोई ?
भरे किसने अंधेरों से मुकद्दर ?
मिटा दिए क्यों मुहब्बत के लफ्ज़ लिखकर ?
कोई तो आता बन मसीहा ज़िंदगी का,
क्यों ना आ नसीबा संवारता है कोई !
अब तो नासूर बन चले ज़ख्म दिलके ,
बीतते नहीं ये लम्हें बोझिल से ।
इस दर्द से याखुदा कोई ना गुज़रे,
दुआ कर -- दामन पसारता है कोई !
ये इंतज़ार किसका - ये किसकी आरज़ू है ,
टूटे दिल को अब किसकी जुस्तजू है ?
बरसों से कब कोई गुजरा इधर से ?
फिर किसकी धुन में दिन गुजारता है कोई ?