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शनिवार, 18 जुलाई 2020

ले नाम किसी का -

 नज़रों से राहें बुहारता है कोई 
-ले नाम किसी का पुकारता है कोई  !

आ साहिल पे डूबी येक्यों मेरी कश्ती ?
उजाड़ गया  कोई अरमानों की बस्ती ?  
अपना बन किसने  घोपां है खंजर ,
इन सवालों से लड़ता ना हारता है कोई ! 

सबने मिलजुल दीवाली मनाई,
 दुनिया   सारी रोशनी में नहाई ।
सूनी सी ये चौखट - कहो !किसकी है भाई ? 
क्यों ना इसपे -दिया इक बालता है कोई ?  

भरे किसने   अंधेरों से मुकद्दर ?
मिटा दिए क्यों मुहब्बत के लफ्ज़ लिखकर ?
कोई तो आता बन मसीहा ज़िंदगी का,
 क्यों ना आ नसीबा संवारता है कोई !

अब तो नासूर बन चले  ज़ख्म दिलके ,
बीतते नहीं ये लम्हें बोझिल से ।
इस दर्द से याखुदा कोई ना गुज़रे,
दुआ कर -- दामन पसारता है कोई !

ये इंतज़ार किसका - ये किसकी   आरज़ू है ,
टूटे दिल को अब किसकी  जुस्तजू है ?
बरसों से कब कोई गुजरा इधर से ?
फिर किसकी धुन में दिन गुजारता है कोई ?