न आओ अब साथ मेरे
अकेले ही चलने दो मुझे ,
खा -खा ठोकर जीवन पथ पर
खुद संभलने दो मुझे !
बहुत दूर तक ना तुम
आ सकोगे साथ मेरे
शून्य मैं शिखर हो तुम
कब आ पाओगे हाथ मेरे ;
मरीचिका में व्यर्थ की
खुद को ही छलने दो मुझे
न आओ अब साथ मेरे
अकेले ही चलने दो मुझे !
शून्य मैं शिखर हो तुम
कब आ पाओगे हाथ मेरे ;
मरीचिका में व्यर्थ की
खुद को ही छलने दो मुझे
न आओ अब साथ मेरे
अकेले ही चलने दो मुझे !
बरसे थे बादल से तुम ,
थी तपती धरा - सी मैं ;
धधकने लगी और ज्यादा
हुई शीतल जरा -सी मैं
नियति से मिली अगन में
यूँ ही जलने दो मुझे
न आओ अब साथ मेरे
अकेले ही चलने दो मुझे ,
नियति से मिली अगन में
यूँ ही जलने दो मुझे
न आओ अब साथ मेरे
अकेले ही चलने दो मुझे ,
पढ़ना खुद को शब्दों में मेरे
जो तुमसे तुम तक जाते हैं,
सदा कहाँ संग रहता कोई
क्षणभंगुर सब नाते हैं,
दूर छूटी तनहाइयों से
फिर से जुड़ने दो मुझे !
न आओ अब साथ मेरे
अकेले ही चलने दो मुझे !
एकाकी रहने की जिद नही
ये तो है नियति मेरी
खुद से मिल खुद में रहूंगी
यही है जीवन गति मेरी
भ्रम के इस गहरे भंवर से
अब निकलने दो मुझे !
च