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रविवार, 2 अगस्त 2020

ओ !नन्हें शिशु !

क्या जानों तुम अभिनय करना
जानों  बस मन आनंद भरना !

 हैं अबूझ   अस्फुट से स्वर 
मुखरित केवल भाव तुम्हारे
करुणा भरी दृष्टि से  झरते 
अबोध पेंच और दाव तुम्हारे
सीखे कोई हृदय से लग
तुमसे पीर हिया की  हरना!

निर्मल हृदय का प्रतिबिंब
सरल ,निश्छल ,उज्जवल नयना
अनायास  तृप्त करते मन
निर्दोष स्मित ,अव्यक्त   बयना;
अंतस में   विस्मय भरता
तुम्हारा संभल -संभल पग धरना ! 

जीवन बगिया के नव किसलय
अनमोल धरोहर तुम कल की
अनभिज्ञ धूपछाँव और ज्ञान से 
समझते ना  बातें छल की,
फिर  भी कैसे  सीख गए 
खुद ही प्रेम की   भाषा पढ़ना ? 

क्या जानों तुम अभिनय करना
जानों  बस मन आनंद भरना !