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रविवार, 2 अगस्त 2020

नन्हें बालक !

तेरे  आगे  सब  धूल रे, 
तू आँगन का  फूल  रे! 

नटखट ,  चंचल  और चपल 
तुम नन्हे  कृष्णकन्हाई, 
पतझड़ में बसंत रे तुम! 
आशा की  शीतल पुरवाई:
देख -देख अभिराम  छवि 
जाती हर  दुःख भूल रे! 
तू आँगन का  फूल  रे! 

तू है मेरे  जिगर का टुकड़ा, 
जीऊँ देख  तुम्हारा मुखड़ा, 
खिली रंगत निहार तुम्हारी 
भूलूँ   जग का हर एक दुखड़ा ,
तुम्हें ज़रा  मुरझाया देखूँ, 
हिया  में चुभते   शूल रे!
तू आँगन का  फूल  रे! !