हर बात सुन लेते मन की,
फिर चले जाते तुम बाबा!
अधूरे कहन की ये पीड़ा
कहाँ जीवन-भर होगी कम बाबा!
थमते थे पाँव आ जिसपे
हुआ आज वो द्वार बंद मेरा
U खड़ी बेबस सूनी चौखट अब
ना भरती अपनेपन का दम बाबा!
हुंकार स्नेह की मौन हुई
जिसकी थी पल-पल आस मुझे
हो कहीं जैसे आसपास मेरे
हैं अब नाहक ये मन के भ्रम बाबा!!
वही गाँव वही गलियाँ पर
तुम बिन हर शै बदल गई
छीन छाँव मेरे हिस्से की
संग ले गयेे मेरा बचपन बाबा!
कौन पौंछे बहते आँसूं
छलक रहे ये विकल नयन
ना कोई सहलाये स्नेह से अब
बने हर दर्द का जो मरहम बाबा!
तुम्हारी आशीष की छाया में
जीने की हर राह मिली मुझको
था कौन उस पार विकल तुम बिन
कुछ पल तो जाते थम बाबा! ///