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शुक्रवार, 19 जुलाई 2024

कहो ना माँ!

  कहो ना माँ ! 

मत चुप रहो! 

बता दो पिताजी को आज. 

जो जीवन के पच्चीस साल

उन्होंने देश को दिये

सीमाओं के प्रहरी बनकर

निर्निमेष आँखों से  

रखी नजर छद्म शत्रु पर

संगीनों के साये में!

बहादुरी से काटे हैं कई साल!

 पर वो अकेले नहीं 

जिन्होंने दिया है

 तुम्हारे चूल्हे को  ईंधन

घर के दस जनों के मुख को ग्रास.

तन ढकने को कपड़ा

और रहने को छत! 

तपा है घर का चूल्हा

तुम्हारे त्याग की आँच में! 

तुम्हारे धीरज से पकी है रोटियाँ

तुम्हारे श्रम से सजे हैं

हर तन पर कपड़े! 

तुम्हारे साहस और दृढ़ता  ने दी है

हर सर को छत

बता दो कि जैसे  वर्षों वो

नही सोये सीमा पर

तुम भी ड़टी हो घर के मोर्चे पर

विगत पच्चीस सालों से!!