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सोमवार, 9 सितंबर 2024

 बहुत मुश्किल था 

तुम्हें अलविदा कहना भी, 


आखिरी पल में 

झुकी वो तुम्हारी नजर, 

तन्हाई में चुभती है 

अब तलक बनकर खंजर 

आसान कहाँ मौन  एकान्त मे

इस तपन में दहना भी !


अनगिन भूलों का भार

 ले चल रहे अपने सर 

 झांकते हर सूरत में ,ढूँढते 

तुम्हें मेरे नयन  कातर !

किसके कहें तेरी याद में 

थमता नहीं आँसूओ का बहना भी 



 नदी समय की बहती जाती 

कभी लौट कर ना आ पाती 

 विरह से व्याकुल  आत्मा 

 अहर्निश गीत विरह के गाती 

 आस नहीं मिलन की, पर सुख देता 

 तेरी यादों के संग रहना भी!