उच्छ्वास
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रविवार, 9 मार्च 2025
प्रेम तुमने क्या ना दिया?
सोमवार, 24 फ़रवरी 2025
तेरी इक पुकार पे
तेरी एक पुकार पे पीहर
चली आती हूँ दौड़ी माँ!
बैठ फिर सुख -दुःख साझा करती
माँ बेटी की जोड़ी माँ!
बैकुंठ धाम- सा घर तेरा!
देख तृप्त हो जाऊँ माँ,
हर पीड़ा और चिंता से,
पल में मुक्त हो जाऊँ माँ!
स्नेह- ममता की नींव है जिसकी
तेरे त्याग की ईंट और रोड़ी माँ!
हँसी खुशी के रंग बिखरे
तेरा आँगन अजब अनूठा माँ!
तरुवर विशाल बन झूम रहा
संस्कार तेरे का बूटा माँ
इसके आगे फीकी जग की
ये माया लाख करोड़ी माँ!
वो घड़ी बीत गयी
घड़ी बीत गयी प्रिये
जिसका भीतर बड़ा भय था
सूख गया अनायास फिर
जो सुखद प्रेम किसलय था!
छद्म स्नेह की लीपापोती
थी प्रवंचक मुखड़ों पर
कब किसकी दृष्टि पहुँच सकी
टूटे सपनों के टुकड़ों पर!
हृदयहीनता से अपनों की
विदीर्ण हुआ हृदय था!
कोई थपकी स्नेह भरी न दे पाई,
धीरज व्याकुल मन को,
हँसी खुशी के अविरल नाद
रोक सके न भीषण कम्पन को
दावानल -सा धधकता ये
कैसा निर्मम समय था¡
रुँधे कंठ में फंसे रहे स्वर
ना अधरों तक न पहुँच सके
हंसना चाहा हँस न पाए
ना सबके आगे सिसक सके!
खेल- खेल में
तुम खेल- खेल में पास आये
और जान पे मेरी खेल गये!
हँसाया फिर उतना ही रुलाया
क्यों इस विषाद में ठेल गये।
बड़े मन से थामा था मैंने,
आशाओं का आसमान तुम्हारा!
तंमय होकर सुना था हर दिन
मधुर रस भरा गान तुम्हारा!
अलग होकर भी कहाँ अलग थे
हर पीड़ा मिलजुल कर झेल गए!
कितने बसंत कितने पतझर
अनायास ही बीत गए!
क्या भूल हुई भारी मुझसे
जो बदल यूँ तुम मनमीत गये
मुँह मोड़ अचानक चले गए
कहाँ वो मन के मेल गए! !
बड़े जतन से मैंने तुम्हें
एक नेह डोर में बाँधा था!
जब सर रखकर रोना चाहा
पाया वो पराया कांधा था!
सब सुख ले खुद के साथ चले
बो प्राणों में विरह की बेल गए!!
सोमवार, 9 सितंबर 2024
बहुत मुश्किल था
बहुत मुश्किल था
तुम्हें अलविदा कहना भी,
आखिरी पल में
झुकी वो तुम्हारी नजर,
तन्हाई में चुभती है
अब तलक बनकर खंजर
आसान कहाँ मौन एकान्त मे
इस तपन में दहना भी !
अनगिन भूलों का भार
ले चल रहे अपने सर
झांकते हर सूरत में ,ढूँढते
तुम्हें मेरे नयन कातर !
किसे कहें तेरी याद में थमता नहीं
अब तक आँसूओ का बहना भी
नदी समय की बहती जाती
कभी लौट कर ना आ पाती
विरह से व्याकुल आत्मा
अहर्निश गीत विरह के गाती
आस नहीं मिलन की, पर सुख देता
तेरी यादों के संग रहना भी!
शुक्रवार, 19 जुलाई 2024
नैनों का ताल सुखाया हमने!
रहे मुस्काते सबके आगे, कब सही
दिल का हाल बताया हमने
थे भीतर कंगाल बहुत
पर. मालामाल दिखाया हमने!
,मजबूरी में विदा किया
पर चैन कहाँ उन्हें खोकर
उन राहों पर बिछी थी आँखे
जहाँ से निकले वो होकर
सुन, जिसे वो समझ न पाए
गीत वही क्यों गाया हमने
!
कुछ कह न सके
न कुछ सुन ही सके!
चंद सपने भी उन संग
हम न बुन ही सके
खता करी न कोई फिर भी
खुद को बहुत सताया हमने!
बने दस्तावेज दर्द के
पल खुशियों के रूठ गए!
बहुत संभाला खुद को हमने
पर बाँध सब्र के टूट गए!
रिसा पलकों से बूँद -बूँद
नैनों का ताल सुखाया हमने!
कहो ना माँ!
कहो ना माँ !
मत चुप रहो!
बता दो पिताजी को आज.
जो जीवन के पच्चीस साल
उन्होंने देश को दिये
सीमाओं के प्रहरी बनकर
निर्निमेष आँखों से
रखी नजर छद्म शत्रु पर
संगीनों के साये में!
बहादुरी से काटे हैं कई साल!
पर वो अकेले नहीं
जिन्होंने दिया है
तुम्हारे चूल्हे को ईंधन
घर के दस जनों के मुख को ग्रास.
तन ढकने को कपड़ा
और रहने को छत!
तपा है घर का चूल्हा
तुम्हारे त्याग की आँच में!
तुम्हारे धीरज से पकी है रोटियाँ
तुम्हारे श्रम से सजे हैं
हर तन पर कपड़े!
तुम्हारे साहस और दृढ़ता ने दी है
हर सर को छत
बता दो कि जैसे वर्षों वो
नही सोये सीमा पर
तुम भी ड़टी हो घर के मोर्चे पर
विगत पच्चीस सालों से!!
बुधवार, 10 जुलाई 2024
बाबा
शनिवार, 22 जनवरी 2022
क्या दूं प्रिय उपहार तुम्हें?
क्या दूँ प्रिय! उपहार तुम्हें?
जब सर्वस्व पे है अधिकार तुम्हें
बुधवार, 17 नवंबर 2021
मुन्नी हँसती हौले हौले!
बैया - सा मुँह खोले,
मुन्नी हँसती हौले-हौले,
अधमुंदी पलकों के पीछे
जाने कैसे सपने देखे!
चौंक के खुलते अनायास
अभिराम नयन-पट भोले!
ना जाने अभिनय का कौतुक
तके टुकुर- टुकुर हो भौचक!
लेती अँगड़ाई अनायास
फिर भार देह का तोले
मुन्नी हँसती हौले-हौले!
अजब स्वामिनी बनी
नचाए सबको ऊँगली पर
मुस्कान पे हर कोई न्यौछावर
इसी के अंगसंग डोले
मुन्नी हँसती हौले-हौले!