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सोमवार, 9 सितंबर 2024

 बहुत मुश्किल था 

तुम्हें अलविदा कहना भी, 


आखिरी पल में 

झुकी वो तुम्हारी नजर, 

तन्हाई में चुभती है 

अब तलक बनकर खंजर 

आसान कहाँ मौन  एकान्त मे

इस तपन में दहना भी !


अनगिन भूलों का भार

 ले चल रहे अपने सर 

 झांकते हर सूरत में ,ढूँढते 

तुम्हें मेरे नयन  कातर !

किसके कहें तेरी याद में 

थमता नहीं आँसूओ का बहना भी 



 नदी समय की बहती जाती 

कभी लौट कर ना आ पाती 

 विरह से व्याकुल  आत्मा 

 अहर्निश गीत विरह के गाती 

 आस नहीं मिलन की, पर सुख देता 

 तेरी यादों के संग रहना भी!

शुक्रवार, 19 जुलाई 2024

नैनों का ताल सुखाया हमने!

 


रहे मुस्काते सबके आगे, कब सही

दिल का हाल बताया हमने

थे भीतर कंगाल बहुत

पर. मालामाल दिखाया हमने! 


,मजबूरी में विदा किया

पर चैन कहाँ उन्हें खोकर

उन राहों पर बिछी थी आँखे

जहाँ से निकले वो होकर

सुन, जिसे वो समझ न पाए

गीत वही क्यों गाया हमने

कुछ कह न सके

न कुछ सुन ही सके! 

चंद सपने भी उन संग

 हम   न बुन ही सके

 खता करी न कोई फिर भी

खुद को बहुत सताया हमने! 

 


बने दस्तावेज दर्द के

पल खुशियों के रूठ गए! 

बहुत संभाला खुद को हमने

पर बाँध सब्र के टूट गए! 

रिसा पलकों से  बूँद -बूँद

नैनों का ताल सुखाया हमने! 


कहो ना माँ!

  कहो ना माँ ! 

मत चुप रहो! 

बता दो पिताजी को आज. 

जो जीवन के पच्चीस साल

उन्होंने देश को दिये

सीमाओं के प्रहरी बनकर

निर्निमेष आँखों से  

रखी नजर छद्म शत्रु पर

संगीनों के साये में!

बहादुरी से काटे हैं कई साल!

 पर वो अकेले नहीं 

जिन्होंने दिया है

 तुम्हारे चूल्हे को  ईंधन

घर के दस जनों के मुख को ग्रास.

तन ढकने को कपड़ा

और रहने को छत! 

तपा है घर का चूल्हा

तुम्हारे त्याग की आँच में! 

तुम्हारे धीरज से पकी है रोटियाँ

तुम्हारे श्रम से सजे हैं

हर तन पर कपड़े! 

तुम्हारे साहस और दृढ़ता  ने दी है

हर सर को छत

बता दो कि जैसे  वर्षों वो

नही सोये सीमा पर

तुम भी ड़टी हो घर के मोर्चे पर

विगत पच्चीस सालों से!! 


बुधवार, 10 जुलाई 2024

बाबा


 
 हर बात सुन लेते मन की, 
फिर चले जाते तुम बाबा! 
अधूरे कहन की ये पीड़ा 
कहाँ जीवन-भर होगी कम बाबा!
 
थमते थे पाँव आ जिसपे 
 हुआ आज वो द्वार बंद मेरा 
U खड़ी बेबस सूनी चौखट अब 
ना भरती अपनेपन का  दम बाबा! 
 
हुंकार स्नेह की मौन हुई 
 जिसकी थी पल-पल आस मुझे
हो कहीं जैसे आसपास मेरे
हैं अब नाहक ये मन के भ्रम बाबा!! 
 
वही गाँव वही गलियाँ पर
तुम बिन हर शै बदल गई
छीन छाँव मेरे हिस्से की  
संग ले गयेे मेरा बचपन बाबा!
 
कौन पौंछे बहते आँसूं 
छलक रहे ये विकल नयन
 ना कोई सहलाये स्नेह से अब
बने हर दर्द का जो मरहम बाबा!

तुम्हारी आशीष की छाया में
जीने की हर राह मिली मुझको
था कौन उस पार विकल तुम बिन 
 कुछ पल तो जाते थम बाबा! ///

  

शनिवार, 22 जनवरी 2022

क्या दूं प्रिय उपहार तुम्हें?

 क्या दूं प्रिय! उपहार तुम्हें?

जब सर्वस्व पे है अधिकार तुम्हें

मेरी हर प्रार्थना में तुम हो
निर्मल अभ्यर्थना में तुम हो
तुम्हें समर्पित हर प्रण मेरा
माना जीवन आधार तुम्हें

मुझमें -तुझमें क्या अंतर अब!
 कहां भिन्न दो मन-प्रांतर अब
क्या शेष रहा भीतर मेरे
जीता है सब कुछ हार तुम्हें

मेरे साथ मेरे सखा तुम्हीं
मन की पीड़ा की दवा तुम्हीं
क्यों आस कोई जग से रखूं
जब सौंपा सब उर भार तुम्हें

क्या दूं प्रिय! उपहार तुम्हें?
जब सर्वस्व पे है अधिकार तुम्हें
 

बुधवार, 17 नवंबर 2021

मुन्नी हँसती हौले हौले!

बैया - सा मुँह खोले,

मुन्नी  हँसती हौले-हौले,


अधमुंदी पलकों के पीछे

जाने कैसे सपने देखे! 

चौंक के  खुलते अनायास

अभिराम नयन-पट भोले!


ना जाने अभिनय का कौतुक

तके टुकुर- टुकुर हो भौचक!

लेती अँगड़ाई अनायास 

 फिर भार देह का तोले

मुन्नी हँसती हौले-हौले!


 अजब स्वामिनी बनी

नचाए सबको ऊँगली पर

 मुस्कान पे हर कोई न्यौछावर

इसी के अंगसंग डोले

मुन्नी हँसती  हौले-हौले! 

रविवार, 11 जुलाई 2021

रहने दो , कवि! नारी विमर्श पर कविता

 ना उघाड़ो  ये   नंगा सच  
ढका ही रहने दो , कवि!
 दर्द  भीतर का  चुपचाप 
 आँखों से बहने दो कवि!//

 
 

  
 
ये व्यथा लिखने में,  
 कहाँ लेखनी  सक्षम कोई ?
लिखी गयी  तो  ,पढ़ इन्हें 
 कब  आँख हुई नम कोई ?
संताप सदियों से सहा है 
 यूँ ही सहने दो कवि!

डरती रही घर में भी 
 ना बची खेत - क्यार में 
कहाँ-  कहाँ लुटी अस्मत 
बिकी बीच बाज़ार में !
 मचेगा शोर  जग -भर में 
 ये जिक्र जाने दो ,कवि!
 
 लिखने से  ना होगा तुम्हारे  
सुनों ! कहीं इन्कलाब कोई 
रूह के जख्मों का मेरे 
ना दे पायेगा  हिसाब कोई
मौन रह ये रीत जग की 
 निभ ही जाने दो, कवि !  
 दर्द  भीतर का  चुपचाप 
 आँखों से बहने दो कवि!/
 

शनिवार, 12 जून 2021

 धीरे- धीरे पग धरो सजनिया 
सजना के आँगन में ; 
चिर  संचित  सपने ले उतरो 
 प्रीत  के चन्दन वन  में !
 

झुके- झुके   नैनों में सजी 
 गहरी रेखा   काजल की .
 लगा     महावर  खूब ,
 मोहे मन   रुनझुन  पायल की ;
  हर मन  भावविभोर आज 
  बिछा तुम्हारे  अभिनन्दन  में !

सरल सा साजन  है  आतुर 
 उठाने को   नाज़  तुम्हारा . 
उसके जीवन और साँसों पर 
 अब है  राज़ तुम्हारा ;
दिखना दो पर एक ही रहना 
बस कर  एक दूजे के मन में !

 छूटी बचपन की  संग  -सहेली  
  पीछे  रही  गली बाबुल की . 
 उठी हूक जोर जिया में  
 याद  कर  अखियाँ छलकीं  ,
 आवेग  भावों  के  होते प्रबल 
 विचलित  से अंतर्मन में !
 

ची  हाथ मेहँदी  सुहाग  आज 

राग- प्रीत  भीतर लहराए ,

प्रियतम संग बंधी  बिन  डोर ,
बंधन   ये कोई   तोड़ ना पाए 
छवि बसी पिया की बीच 
 रसीले मतवाले नयनन  में !

रविवार, 21 मार्च 2021

कहाँ आसान था

 

था वो मासूम-सा 
दिल का  फ़साना साहेब 
कहाँ आसान था पर
प्यार निभाना साहेब !

दुआ थी  ना कोई चाह  अपनी 
यूँ ही  मिल गयी उनसे  निगाह अपनी 
 बड़ा  प्यारा था उनका
सरेराह मिल जाना साहेब !

रिश्ता ना जाने कब का
लगता  करीब था
 उनसे  यूँ मिलना 
बस अपना नसीब था 
अपनों से प्यारा  हो गया था
 वो एक बेगाना साहेब ! 

वो सबके खास थे
पर अपने तो दिल के पास थे
हम इतराए हमें मिला
दिल उनका नजराना साहेब! 

हमसे निकलने लगे बच - बच कर
खूब मिले ग़ैरों से हँस कर!
फिर भी रहा राह तकता,
दिल था अजब दीवाना साहेब!

बातें थी कई झूठी,
अफ़साने बहुत थे!
हुनर उनके पास
बहलाने के बहुत थे!
ना दिल सह पाया धीरे- धीरे
उनका बदल जाना साहेब! 

बहाए आँसू  उनकी खातिर 
और    उड़ाई  नींदें अपनी 
जो  लुटाया उनपर हमने 
 था अनमोल खजाना साहेब 

बहुत संभाला हमने खुद को
दर्द को पीया भीतर -भीतर
पर ना रुक पाया जब -तब
अश्कों का छलक जाना साहेब!!

अलविदा  कहना  कहाँ आसान था ?
 टूटा जो रिश्ता वो मेरा गुमान था !
 पर बेहतर था  तिल-तिल मरने से ,
एक दफ़ा मर जाना  साहेब !


बुधवार, 17 फ़रवरी 2021

आज कविता सोई रहने दो !

 आज  कविता सोई रहने दो,

मन के मीत  मेरे !

आज नहीं जगने को आतुर 

सोये उमड़े   गीत मेरे !

कोई तो ऐसी बात है जो ये

 मन विचलित हुआ जाता है ,

अनायास जगा दर्द कोई 

 पलकें नम किये जाता है ,

आज नहीं सोने देते  

 ये रात - पहर रहे बीत मेरे !


आज ना चलती मन की कोई

उपजे ना प्रीत का राग कोई 

 शांत हृदय में अनायास ही

व्याप्त हुआ विराग कोई,

चैन से रहने न देते

देह -प्राण रहे रीत मेरे! 


कोई खुशी  ना छूकर गुजरे,

बहलाती  ना सुहानी याद कोई।

होठों पर से लौटती जाती,

आ -आ कर फरियाद कोई  ।

लगे बदलने असह्य पीर में 

मधुर   प्रेम- संगीत मेरे!


























यू